हामिदा बानू: भारत की पहली महिला पहलवान!




भारतीय खेल जगत में महिलाएं आज हर क्षेत्र में धूम मचा रही हैं। ओलंपिक से लेकर अंतरराष्ट्रीय खेलों तक, हमारी महिला एथलीट लगातार नए कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत की पहली महिला पहलवान कौन थी?

जी हाँ, उनका नाम था हामिदा बानू बेगम। एक ऐसी महिला जो न केवल खेल की दुनिया में अपना लोहा मनवाया, बल्कि एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व के रूप में भी जानी जाती हैं।

हामिदा बानू का प्रारंभिक जीवन

हामिदा बानू का जन्म 1905 में बंगाल के हुगली जिले के चंडीपुर गाँव में एक रूढ़िवादी मुस्लिम परिवार में हुआ था। बचपन से ही हामिदा को खेल-कूद का बहुत शौक था। वह अपने भाइयों और गाँव के लड़कों के साथ कुश्ती लड़ती थीं। उनकी प्रतिभा को जल्द ही पहचान मिल गई और उनके परिवार ने उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया।

पहलवानी में प्रवेश

तब के ज़माने में महिलाओं के लिए पहलवानी करना एक असामान्य बात थी। लेकिन हामिदा बानू ने सामाजिक बंधनों को तोड़ा और पहलवानी के अखाड़े में कदम रखा। उन्होंने प्रसिद्ध पहलवान पंडित किशोर सिंह से कुश्ती का प्रशिक्षण लिया।

प्रशिक्षण के दौरान, हामिदा बानू ने अपनी असाधारण शक्ति और दृढ़ निश्चय का परिचय दिया। वह पुरुष पहलवानों के साथ बराबरी पर मुकाबला करती थीं और कई बार उन्हें हराकर भी दिया।

पेशेवर पहलवानी

1927 में, हामिदा बानू ने अपनी पेशेवर पहलवानी की शुरुआत की। उन्होंने कई प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया और कई पुरस्कार भी जीते। वह जल्द ही भारत की सबसे प्रसिद्ध महिला पहलवान बन गईं।

हामिदा बानू अपनी शानदार कुश्ती तकनीक और निडरता के लिए जानी जाती थीं। वह दर्शकों को अपनी मजबूत पकड़ और तेज चालों से रोमांचित करती थीं।

सामाजिक प्रभाव

हामिदा बानू का खेल जगत में योगदान बहुत बड़ा था। उन्होंने न केवल भारतीय पहलवानी में एक नया अध्याय जोड़ा, बल्कि महिलाओं के लिए खेलों में भाग लेने के प्रति समाज की धारणा को भी बदल दिया।

उनकी उपलब्धियों ने महिलाओं को साबित किया कि वे किसी भी क्षेत्र में पुरुषों के बराबर हो सकती हैं। उन्होंने महिलाओं को अपनी सीमाओं को तोड़ने और अपने जुनून का पीछा करने के लिए प्रेरित किया।

विवाद और चुनौतियां

हामिदा बानू के जीवन में भी कई विवाद और चुनौतियां आईं। उनके पहलवानी में उतरने के फैसले की कई रूढ़िवादी लोगों ने आलोचना की। कुछ लोग ऐसे भी थे जो महिलाओं के खेलों में भाग लेने पर सवाल उठाते थे।

लेकिन हामिदा बानू ने कभी भी आलोचनाओं की परवाह नहीं की। उन्होंने अपने खेल और अपने सपनों का पीछा जारी रखा। उन्होंने साबित किया कि महिलाएं भी किसी भी क्षेत्र में सफल हो सकती हैं, बशर्ते उन्हें अवसर और समर्थन मिले।

पदक और सम्मान

अपने शानदार करियर में, हामिदा बानू ने कई पदक और सम्मान जीते। उन्हें 1935 में अखिल भारत महिला कुश्ती चैंपियनशिप से स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया था।

हामिदा बानू को उनके असाधारण योगदान के लिए भारत सरकार द्वारा भी सम्मानित किया गया था। उन्हें 1977 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया, जो भारत का चौथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान है।

भारत की पहली महिला बॉडी बिल्डर

पहलवानी के अलावा, हामिदा बानू भारत की पहली महिला बॉडी बिल्डर भी थीं। उन्होंने 1952 में पहली मिस इंडिया बॉडी बिल्डिंग प्रतियोगिता में भाग लिया था।

हामिदा बानू की उपलब्धियां और उनका दृढ़ निश्चय आज भी महिला पहलवानों और एथलीटों के लिए एक प्रेरणा है। वह भारतीय खेल जगत की एक महान व्यक्तित्व रहेंगी।