अमेठी: एक राजनीतिक किला जो अब खंडहर बन चुका है
अमेठी, उत्तर प्रदेश का एक जिला है, जो अपने समृद्ध राजनीतिक इतिहास के लिए जाना जाता है। कभी कांग्रेस का गढ़ माना जाने वाला यह जिला अब एक राजनीतिक किला बन गया है जो अब खंडहर बन चुका है।
अमेठी का राजनीतिक इतिहास 1980 के दशक में शुरू हुआ, जब राजीव गांधी यहां से लोकसभा चुनाव जीते थे। इसके बाद, सोनिया गांधी ने भी यहां से कई बार चुनाव जीता। कॉन्ग्रेस के लिए अमेठी एक सुरक्षित सीट बन गई थी।
लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में बाजी पलट गई। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के स्मृति ईरानी ने कांग्रेस की स्मिता पाटिल को हराकर यहां से जीत हासिल की। यह अमेठी में कांग्रेस के 40 साल के शासन का अंत था।
अमेठी में कांग्रेस की हार के कई कारण थे। एक कारण यह था कि पार्टी संगठन कमजोर हो गया था। 2017 के विधानसभा चुनाव में, कांग्रेस जिले की पांच में से केवल एक सीट जीत पाई थी। दूसरा कारण यह था कि भाजपा ने अमेठी को कड़ी चुनौती दी थी। ईरानी एक मजबूत उम्मीदवार थीं, और भाजपा ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर भी चुनाव लड़ा।
अमेठी में कांग्रेस की हार का दूरगामी असर हुआ है। यह इस बात का संकेत है कि पार्टी उत्तर प्रदेश में अपना जनाधार खो रही है। यह इस तथ्य की भी ओर इशारा करता है कि भाजपा पूरे भारत में अपनी ताकत बढ़ा रही है।
अमेठी में कांग्रेस की हार एक सबक है। यह इस बात का अनुस्मारक है कि किसी भी राजनीतिक पार्टी को अपने जनाधार को हल्के में नहीं लेना चाहिए। यह इस तथ्य की ओर भी इशारा करता है कि भारतीय राजनीति लगातार बदल रही है।
अमेठी कभी कांग्रेस के लिए एक अजेय गढ़ था। लेकिन अब यह एक राजनीतिक किला बन गया है जो अब खंडहर बन चुका है। अमेठी में कांग्रेस की हार पार्टी के लिए एक बड़ा झटका है। यह उत्तर प्रदेश में पार्टी के भविष्य के लिए भी चिंता का विषय है।