बाल्यकाल से ही आपर्णा को शब्दों से गहरा लगाव था। वह घंटों किताबों में खोई रहती थीं, अलग-अलग दुनियाओं की यात्रा करती थीं और विभिन्न विचारों का सामना करती थीं। जैसे-जैसे वह बड़ी हुईं, उन्होंने महसूस किया कि उनके भीतर कहानियाँ कहने और विचार व्यक्त करने की एक अदम्य इच्छा थी।
आपर्णा की लेखनी की सबसे उल्लेखनीय विशेषताओं में से एक उनकी निर्भीकता है। वह उन विषयों से नहीं शर्मातीं जो विवादास्पद या विचारोत्तेजक हैं। उनकी रचनाओं में लैंगिक समानता, सामाजिक न्याय और भारतीय समाज की जटिलताओं जैसे मुद्दों पर निडरता से चर्चा की गई है।
आपर्णा के लेखन में एक तीखी बुद्धि और सूक्ष्म अवलोकन की भावना भी है। वह भारतीय समाज की विडंबनाओं और विरोधाभासों पर तीखी टिप्पणी करती हैं, अपने पाठकों को स्थिति पर पुनर्विचार करने और दुनिया को एक नए दृष्टिकोण से देखने के लिए प्रेरित करती हैं।
लेकिन आपर्णा का लेखन केवल आलोचनात्मक नहीं है। यह आशा और संभावना का एक स्रोत भी है। उनकी रचनाएँ पाठकों को याद दिलाती हैं कि दुनिया में अभी भी अच्छाई है और हम सब कुछ बदलने और एक बेहतर भविष्य बनाने की क्षमता रखते हैं।
आपर्णा दास का लेखन भारतीय साहित्य का एक अनिवार्य हिस्सा है। उनकी रचनाएँ पाठकों को सोचने, प्रश्न करने और अपने आसपास की दुनिया की गहरी समझ विकसित करने के लिए प्रेरित करती हैं। यदि आप भारत और उसके जटिल समाज की एक गहरी समझ तलाश रहे हैं, तो आपर्णा दास की किताबों को अवश्य पढ़ें।