अन्नामलाई के नाम से मशहूर एम.के. अन्नादुरई का जन्म 15 सितंबर 1909 को कांचीपुरम में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता, मुरुगप्पा, एक पुजारी थे, जबकि उनकी माता, पन्नाम्मल, एक गृहिणी थीं।
अन्नामलाई एक मेधावी छात्र थे और उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कांचीपुरम में प्राप्त की। बाद में, उन्होंने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज में दाखिला लिया, जहां उन्होंने अर्थशास्त्र का अध्ययन किया। कॉलेज के दिनों में ही अन्नामलाई की राजनीति में रुचि जागी।
1935 में, अन्नामलाई भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया और कई बार जेल भी गए। 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, अन्नामलाई तमिलनाडु की राजनीति में शामिल हो गए।
1953 में, उन्होंने द्रविड़ मुनेत्र कझगम (डीएमके) नामक एक नया राजनीतिक दल स्थापित किया। डीएमके की स्थापना सामाजिक न्याय, समानता और तमिल भाषा के संरक्षण के सिद्धांतों पर की गई थी।
अन्नामलाई डीएमके के पहले अध्यक्ष बने और उन्होंने पार्टी को सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचाया। 1967 में, डीएमके ने तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की और अन्नामलाई राज्य के मुख्यमंत्री बने।
अन्नामलाई एक करिश्माई नेता थे और लोग उनका बहुत सम्मान करते थे। उन्हें "पेरियार" (बड़ा नेता) के रूप में भी जाना जाता था। 3 फरवरी 1969 को लंबी बीमारी के बाद चेन्नई में उनका निधन हो गया।
अन्नामलाई अपने पीछे एक अमिट विरासत छोड़ गए। वह तमिलनाडु के एक प्रिय नेता थे और उन्हें राज्य के सबसे महान मुख्यमंत्रियों में से एक माना जाता है। उनकी विचारधारा और आदर्श आज भी डीएमके और तमिलनाडु की राजनीति को आकार देते हैं।
अन्नामलाई के जीवन से हम कई सबक सीख सकते हैं। उनका साहस, दृढ़ विश्वास और समाज के प्रति उनकी प्रतिबद्धता हमें प्रेरित करती है। हमें उनके आदर्शों को याद रखना चाहिए और एक ऐसे समाज के निर्माण के लिए प्रयास करना चाहिए जो सभी के लिए न्यायपूर्ण और समान हो।